संसद में ‘पार्लियामेंट्री युद्ध’ की चर्चा: हकीकत या राजनीतिक बयानबाज़ी?
शुक्रवार, 22 अगस्त 2025
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अग्रलेख -
• हाल ही में संपन्न मॉनसून सत्र में सरकार और विपक्ष के बीच लगातार टकराव, उत्पादकता पर गहरा असर.
नई दिल्ली :- भारत की संसद का मॉनसून सत्र (21 जुलाई – 21 अगस्त 2025) इस बार खासा विवादित रहा। संसद के दोनों सदनों में लगातार शोर-शराबा, नारेबाज़ी और अवरोध देखने को मिला। सोशल मीडिया और कुछ राजनीतिक बयानों में इसे “पार्लियामेंट्री युद्ध” कहा गया। लेकिन क्या सचमुच संसद युद्धभूमि बन चुकी है या यह सिर्फ एक राजनीतिक अतिशयोक्ति है?
संसद की वास्तविक स्थिति
आंकड़ों के मुताबिक लोकसभा को 120 घंटे चलना था, लेकिन कामकाज सिर्फ 37 घंटे हुआ। यानी उत्पादकता मात्र 31% रही। राज्यसभा में भी स्थिति बेहतर नहीं रही, जहाँ कुल 38% ही काम हो सका। शेष समय हंगामे और स्थगन में निकल गया। रिपोर्टों के अनुसार इस अव्यवस्था से करीब ₹204.5 करोड़ जनता का पैसा व्यर्थ गया।
मुख्य मुद्दे जिन पर टकराव हुआ
1. जम्मू-कश्मीर आतंकी हमला और ‘ऑपरेशन सिंदूर’
22 अप्रैल को पहलगाम (जम्मू-कश्मीर) में हुए आतंकी हमले और उसके जवाब में भारत की कार्रवाई संसद में बहस का बड़ा मुद्दा रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने सरकार का पक्ष रखा। विपक्ष ने ऑपरेशन की सफलता पर सवाल उठाए।
2. बिहार में विशेष मतदाता पुनरीक्षण (SIR)
विपक्ष ने बिहार में हो रहे SIR को “वोट चोरी” करार दिया और इस पर विस्तृत बहस की मांग की। सरकार के इनकार के बाद विपक्षी सांसदों ने सदन को लगातार बाधित किया।
3. विधेयक और बिना बहस पास कानून
विवादों के बीच सरकार ने टैक्स सुधार, खेल प्रशासन और ऑनलाइन गेमिंग से जुड़े कई महत्वपूर्ण विधेयक पास किए। विपक्ष का आरोप है कि ये बिल चर्चा के बिना जल्दबाज़ी में पारित किए गए।
किन नेताओं और दलों की प्रमुख भूमिका रही
सरकार की ओर से: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, एस. जयशंकर और भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा सबसे आगे रहे।
सहयोगी दल: शिवसेना (श्रिकांत शिंदे), जेडीयू (संजय झा), टीडीपी (हरीश बबूलागी) आदि।
विपक्ष की ओर से: कांग्रेस (राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे), समाजवादी पार्टी (अखिलेश यादव), तृणमूल कांग्रेस और INDIA ब्लॉक के अन्य दल।
‘पार्लियामेंट्री युद्ध’ शब्द का सच'
मुख्यधारा के समाचार पत्रों और टीवी रिपोर्ट्स में कहीं भी “युद्ध” शब्द का आधिकारिक उपयोग नहीं हुआ। मीडिया ने इसे “हंगामा”, “उपद्रव”, “अवरोध” कहा। “पार्लियामेंट्री युद्ध” शब्द अधिकतर राजनीतिक भाषणों और सोशल मीडिया पर ही इस्तेमाल हुआ।
संभावित नतीजे
राजनीतिक असर: विपक्ष SIR और सुरक्षा मुद्दों को लेकर चुनावों में आक्रामक रहेगा।
संसदीय परंपरा पर चोट: लगातार बाधाओं से लोकतांत्रिक बहस की परंपरा कमजोर हुई।
जनता पर असर: बहस के बिना पास हुए कानूनों पर पारदर्शिता और जवाबदेही पर सवाल उठेंगे।
निष्कर्ष :- संसद का हालिया सत्र लोकतांत्रिक संवाद की जगह टकराव और हंगामे का प्रतीक बन गया। “पार्लियामेंट्री युद्ध” कहना भले ही राजनीतिक नारा हो, लेकिन हकीकत यह है कि संसद ने अपने तय समय का अधिकांश हिस्सा व्यर्थ किया और जनता से जुड़े अहम सवाल अनुत्तरित रह गए।
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